एनटीपीसी के भूविस्थापित दो माह से धरने पर, बढ़ी मुश्किलें

कोरबा 23 जून। भारत सरकार के नियंत्रण में संचालित सार्वजनिक उपक्रम और महारत्न कंपनी एनटीपीसी का भूविस्थापितों के प्रति रवैया पूरी तरह संवेदनहीन बना हुआ है। परियोजना के लिए दी गई लोगों की जमीन के बदले उनके सामने कुल मिलाकर परेशानियां खड़ी कर दी गई हैं। स्थिति यह है कि अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए विस्थापितों को दो.चार दिन नहीं बल्कि 2 महीने से सड़क की लड़ाई लडऩी पड़ रही है। विस्थापित कह रहे हैं कि उन्हें खुदकुशी के लिए मजबूर किया जा रहा है।

यह कोरबा का तानसेन चौराहा जहां पर एनटीपीसी कि कोरबा परियोजना से प्रभावित चारपारा के विस्थापित लोग अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। 22 अप्रैल से शुरू हुआ इनका प्रदर्शन 62 दिन पूरे कर चुका है लेकिन नतीजे शून्य है। इसके बीच साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की कुसमुंडा परियोजना के अंतर्गत चंद्रनगर जटराज इलाके से वास्ता रखने वाले भूमि स्थापित दिल हरण पटेल ने जहर सेवन कर खुदकुशी कर ली। एसईसीएल के रवैया से परेशान था तमाम तरह की परेशानियों की जानकारी होने पर भी ना तो उसे रोजगार दिया गया और ना ही दूसरे मामले सुलझाए गए। इस प्रकरण को अब हवा मिलने लगी है और यहां तक कहा जा रहा है कि एक तरह से एनटीपीसी प्रबंधन भी चारपारा के विस्थापितों को खुदकुशी के रास्ते पर आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। चारपारा के विस्थापित लक्ष्मण केवर्त बताते हैं कि जमीन लेने के बदले उन्हें रोजगार और शेष बची जमीन की क्षति पूर्ति एनटीपीसी से लेना है इसी बात को लेकर टकराव बना हुआ है और हम लोग धरना प्रदर्शन करने को मजबूर है। चारपारा के भूमि स्थापित के मामले में एनटीपीसी प्रबंधन और प्रशासन की भूमिका से यह लोग काफी दुखी है। कैवर्त ने बताया कि अपने मुद्दे को सुलझाने के लिए कई स्तर पर लड़ाई लड़ी जा रही है लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं है। हमारी ओर से पूरे प्रकरण को सक्षम अधिकारियों की जानकारी में लाया गया। प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के द्वारा जारी एक सूचना पर भी अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंगी। इसलिए अब हमारी लड़ाई लंबी चलेगी। क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि अधिकारियों का रवैया हम लोगों को खुदकुशी के लिए मजबूर करने वाला प्रतीत होता है।

चारपारा क्षेत्र से वास्ता रखने वाली सोनी पटेल भी इस बात से काफी दुखी है कि उनकी जमीन लेने के बाद भी एनटीपीसी प्रबंधन ने कोई ध्यान नहीं दिया और ना ही प्रशासन ने हमारे प्रदर्शन पर संज्ञान लिया जबकि जिला मुख्यालय में प्रदर्शन करते हुए हम लोगों को 62 दिन का समय हो चुका है। अपने अधिकार के लिए चारपारा के यह लोग भीषण गर्मी के बावजूद कोरबा में धरना प्रदर्शन करने पर उतारू है। इन लोगों के द्वारा पिछले वर्षों में एनटीपीसी के पक्ष में अपनी जमीन का अधिग्रहण करने से लेकर बाद की प्रक्रिया में लगातार बढ़ती गई विसंगतियों की ओर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया है। विस्थापितों ने बताया कि 17 अगस्त 1981 में नौकरी संबंधित सूचना एनटीपीसी के द्वारा जारी की गई बस 1981 से 1986 तक केवल 21 लोगों को नौकरी दी गई और पहले के 3 लोगों को मिलाकर 24 लोगों को ही लाभान्वित किया गया जबकि 12 फरवरी 1987 को नौकरी और अन्य संबंधित सूचना जारी की गई लेकिन इसमें किसी को भी नौकरी का लाभ नहीं दिया गया। विस्थापितों के द्वारा भारत सरकार के सक्षम अधिकारियों और राजनेताओं को अवगत कराया गया है कि एनटीपीसी कोरबा के द्वारा अपनी क्षमता 2100 मेगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2010 में 2600 मेगा वाट कर ली गई लेकिन इतना सब कुछ होने और भारी.भरकम लाभ अर्जित करने के बाद भी क्षेत्र के विस्थापितों और जन सामान्य को किसी प्रकार का लाभ नहीं दिया गया। इस तरह से लोगों के नागरिक अधिकारों की लगातार अनदेखी की जा रही है। अपनी उचित मांगों को लेकर जिला मुख्यालय कोरबा में धरना प्रदर्शन कर रहे विस्थापित पूछते हैं कि क्या हम लोगों ने देश के लिए बिजली उत्पादन करने वाली संस्था एनटीपीसी को अपनी पुश्तैनी जमीन देकर कोई अपराध कर लिया जो कि हमें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। विस्थापितों का साफ तौर पर कहना है कि या मामला नागरिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है इसलिए इस पर ध्यान दिया जाए।

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