एचटीपीपी के बंद राखड़ डैम बनेगा ग्रीन एनर्जी का स्त्रोत
कोरबा 26 मई। भविष्य में होने वाले कोयला संकट को देखते हुए ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी ने तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। हसदेव ताप विद्युत संयंत्र कोरबा पश्चिम एचटीपीपी के बंद राखड़ डैम लोतलोता व डंगनिया में 40 मेगावाट सौर ऊर्जा प्लांट को केंद्रीय विद्युत प्राधिकारण से हरी झंडी मिल गई है। जो राखड़ डैम कल तक प्रदूषण का पर्याय था, वह स्थल अब ग्रीन एनर्जी का स्रोत बनने जा रहा है।
वर्ष 2022 में देश के विद्युत संयंत्रों को कोयला संकट का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में 10 प्रतिशत कोयला आयात करना पड़ रहा। कोल इंडिया यह पूरी कोशिश कर रही है कि किसी भी तरह से विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति ज्यादा से ज्यादा की जा सके। इसके लिए खदानों में उत्पादन बढ़ाए जाने की कवायद की जा रही। इस बीच केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को हरित उर्जा को बढ़ावा देने कहा है। इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। बंद हो चुके राखड़ बांध लोतलोता व डंगनियाखार में सौर उर्जा प्लांट लगाने का केंद्र से नोटिफिकेशन हो चुका है, अब आगे की प्रक्रिया विद्युत कंपनी मुख्यालय स्तर पर पूरी की जा रही है। सभी आवश्यक प्रक्रिया पूरी होने के बाद आगे कार्रवाई की जाएगी। वर्तमान में दोनों राखड़ डैम के ऊपर मिट्टी की परत बिछाई जा रही। एक डैम के लिए न्यूनतम करीब 300 एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है। सौर ऊर्जा लगने से बंद राखड़ डैम का बेहतर उपयोग सुनिश्चत हो सकेगा। साथ ही डैम से उडऩे वाले राख की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी। यहां बताना होगा कि कंपनी के अटल बिहारी वाजपेयी ताप विद्युत संयंत्र मड़वा प्रोजेक्ट में भी 20 मेगावाट के सौर उर्जा संयंत्र की स्थापना हो चुकी है और दूसरे चरण का कार्य चल रहा है। इधर कोरबा में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह के छत में 300 किलोवाट क्षमता का सौर उर्जा प्लांट की योजना है, पर अभी तक काम शुरू नहीं हो सका है।
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2024-25 तक 10 छोटे हाइड्रो पावर, आठ बायोमास्क और कुल 38 सोलर बिजली संयंत्र भी लगाए जाने की योजना है। इन संयंत्रों से करीब 1600 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। इसके लिए संभावित स्थल का चयन कर डीपीआर भी सौंपी जा चुकी है। हरित बिजली का उपयोग न केवल राज्य में किया जाएगा, बल्कि अन्य राज्य को भी विद्युत कंपनी अनुबंध कर बेचेगी।
मांग के अनुरूप घरेलू कोयले की आपूर्ति का संकट तो है, साथ ही उसके जलने के बाद निकलने वाले राख के निपटान की भी समस्या बनी हुई है। इसकी वजह से प्रदूषण हो रहा। बिजली संयंत्रों के चिमनी से निकलने वाले धुएं की वजह से वातावरण में राख घुल रहा। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी सौर उर्जा बेहद कारगार साबित होगा। यही वजह है कि संयंत्रों को कोयला उपलब्ध कराने वाली कोल इंडिया भी अब हरित ऊर्जा का उपयोग की योजना बना ली है। इसकी शुरूआत एसईसीएल के भटगांव से की गई है। यहां 40 मेगावाट क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की गई है।