बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी …@ सत्यप्रकाश पाण्डेय

बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी …

■ सत्यप्रकाश पाण्डेय, बिलासपुर

मोहनभाठा में ब्रिटिश सेना की ज़मीन पर होते अवैध मुरुम उत्खनन और बेतरतीब बेजा कब्ज़ा से आज पक्षी शायद चिंतित हैं। सरकार और प्रशासन खामोश है, यक़ीनन कुछ उनके भी लोगों का हिस्सा होगा। शिकायतों पर कार्रवाही का आश्वासन देने वाले नौकरशाह गर्दन हिलाकर पक्षियों के पक्ष में हामी जरूर भर देते है मगर मौके की हालिया जानकारी उनकी कलम की स्याही सूखा देती है।
आपको बता दें कि मोहनभाठा में ब्रिटिश सेना की 472 एकड़ जमीन पर कब्जा हो गया है। वह जमीन सेना को 66 साल पहले 1946 में दी गई थी। करीब एक दशक पहले सेना ने प्रशासन को चिट्ठी लिखी कि उन्हें मोहनभाठा की जमीन का कब्जा चाहिए। दिक्कत यह है कि रिकार्ड में अब तक जमीन का बड़ा हिस्सा किसानों के नाम पर ही है। इसके अलावा भांठा जमीन के बड़े हिस्से पर बेतहाशा बेजा-कब्जा हो गया है। इसे हटाना कैसे है, यह प्रशासन को अब तक सूझ नहीं रहा। एक जानकारी के मुताबिक़ मोहनभाठा की 472 एकड़ जमीन का कब्जा दिलाने की मांग सेना द्वारा एक दशक पहले प्रशासन से की गई थी। तत्कालीन कलेक्टर ठाकुर राम सिंह ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन एसडीएम कोटा फरिहा आलम सिद्दिकी और राजस्व अफसरों की मीटिंग लेकर कई बिंदुओं पर चर्चा की थी । रिकार्ड के मुताबिक़ पता चला कि 1946 में जब जमीन सेना को दी गई थी, तब सेना ने इसका कब्जा नहीं लिया। जमीन का रिकार्ड भी दुरुस्त नहीं करवाया गया। बाद में समय के साथ आबादी बढ़ती गई।
मोहनभाठा कोटा से करीब 5 किलोमीटर दूर है। सेना को दी गई जमीन पांच गांवों के बीच है। वक़्त के साथ मोहनभाठा की खाली जमीन पर अतिक्रमण होने लगा, आज आलम ये है कि जमीन के अधिकाँश हिस्से पर किसी ना किसी का अवैध मालिकाना हक़ है । यहां की जमीन पर अब कई रसूखदारों के कब्जे हैं, कइयों फ़ार्म हॉउस और आलीशान बंगले ।
इन सबके पीछे का जो सबसे कड़वा और ज्वलंत प्रश्न है वो पक्षियों की सेहत और उनके रहवास का है। मोहनभाठा के कई इलाकों में स्थानीय, प्रवासी पक्षियों की आवाजाही पूरे साल रहती है। कई ऐसे विदेशी परिन्दें हैं जो यहां की अनुकूल स्थिति की वजह से कुछ घंटे, दिन या फिर महीने बिताने के लिए ठहरते हैं। मगर आज के हालात उनके रहवास और दाना-पानी पर संकट खड़ा कर चुके हैं। मानवीय दखलंदाजी और खाली जमीन के हर हिस्से पर इंसानी गिद्धों की तीक्ष्ण नज़र ने आम और ख़ास पक्षियों को संकट में डाल दिया है।
वन महकमें की बेरुखी और उदासीनता को दरकिनार कर भी दें तो बिलासपुर शहर में पर्यावरण और वन्य पशु-पक्षियों की सेहत और उनके बचाव को लेकर आवाज उठाने का दावा करने वाली कइयों गैर सरकारी संस्थाएं (NGO) हैं मगर उनका खेल 10 बाई 8 के बैनर और चुनिंदा चेहरों की वकालत तक सिमित है। ऐसे कथित संस्था और उनसे संबंधित लोगों ने ना कभी कोपरा को बचाने के लिए गला फाड़ा, ना कभी मोहनभाठा के लिए कागजों पर स्याही का इस्तेमाल किया। खैर, इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हम पक्षियों का रहवास बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं। फिलहाल हमारी नज़र नतीज़े पर नहीं, प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा और संरक्षण पर है।

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