पत्रकारिता के हेड मास्टर सनत जी: अनिरुद्ध दुबे

पत्रकारिता के हेड मास्टर सनत जी

अनिरुद्ध दुबे

जब कभी छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता की दूसरी पीढ़ी की चर्चा होती है सनत चतुर्वेदी जी का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। पत्रकारिता धर्म में मानो समझौता शब्द से उन्हें हमेशा से परहेज़ रहा है। नई पीढ़ी के पत्रकार उन्हें पत्रकारिता का हेड मास्टर मानते हैं। जैसे एक दक्ष मूर्तिकार साधारण सी मिट्टी को ख़ूबसूरत प्रतिमा में गढ़ देता है वैसे ही सनत जी ने कितने ही प्रशिक्षु पत्रकारों को तराशकर उन्हें एक बड़े मूकाम तक पहुंचाने का काम किया है। जैसे वे धीर-गंभीर हैं, वैसी ही धीर गंभीर उनकी पत्रकरिता है। उम्र के वे 67 वें पायदान पर कदम रख चुके हैं लेकिन आज भी पूरी शिद्दत के साथ उन्हें कर्म क्षेत्र में डटे हुए देखा जा सकता है।

सन् 1991 से 1994 तक का वह दौर था जब मैं दैनिक अमृत संदेश में कार्यरत था। एक दिन संपादकीय विभाग के हम सभी लोगों को ख़बर मिली कि सनत चतुर्वेदी जी वापस ‘अमृत संदेश’ आ रहे हैं। सन् 1984 में गोविंदलाल वोरा जी ने जब ‘अमृत संदेश’ का प्रकाशन शुरु किया था उसके फाउंडर मेंबर लोगों में सनत भैया भी थे। ‘अमृत संदेश’ में जब उनकी दोबारा वापसी हुई तो निकट से उन्हें समझने का मौका मिला। वोरा जी की तरफ से उन्हें कहा गया था कि “रायपुर की स्थानीय ख़बरों वाला मामला कमजोर दिख रहा है, जिसे ठीक करना है।“ रायपुर के पेज को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा दिलाने मैंने सनत भैया को दिन रात एक करते देखा था। सनत भैया की जब ‘अमृत संदेश’ वापसी हुई उसी समय के आसपास गुणी पत्रकार अमरनाथ तिवारी एवं हरनारायण शर्मा की भी ‘अमृत संदेश’ में इंट्री हुई थी। भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले पत्रकार निकष परमार पहले से वहां सेवाएं दे रहे थे। रायपुर डेस्क को वापस मजबूत बनाने सनत भैया ने नगर संवाददाताओं के बीच तय कर दिया था कि कौन किस क्षेत्र को देखेगा। अमरनाथ तिवारी को पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय देखने कहा गया। उस समय इंटरनेट जैसे शब्द के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय को इंटरनेट से जोड़ने की तैयारी चल रही थी। यह ख़बर सबसे पहले अमरनाथ तिवारी के हाथ लगी। सनत भैया ने “रविवि उपग्रह से जुड़ेगा”- शीर्षक के साथ ससम्मान इस ख़बर को प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया था। वह ऐसा दौर था जब मेरे जैसे कितने ही लोग पत्रकारिता का ‘क ख ग’ सीख रहे थे। भैया को हम सब के काम पर पूरा भरोसा था। मुझे तब आश्चर्य हुआ जब मेरे समकालीन पत्रकार मिलिंद खेर को एक दिन भैया ने लॉन टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा पर संपादकीय लिखने की ज़िम्मेदारी सौंपी। इससे पहले तक मेरे मन में यही बात घर किए हुए थी कि संपादकीय लेखन की सीढ़ी तक पहुंचने में बरसों लग जाते होंगे, लेकिन मिलिंद को लिखते देख भीतर से आवाज़ आई कि मौका मिला तो ज़ल्द मैं भी संपादकीय लिखने की कोशिश करूंगा। यह हसरत पूरी होने में देर नहीं लगी और भैया ने पूरे भरोसे के साथ मुझ जैसे नौसिखिये पत्रकार को संपादकीय लिखने का मौका दे दिया। मेरे व्दारा लिखी वह पहली संपादकीय शायद सिनेमा पर केन्द्रित थी। इसके बाद हफ्ते-पंद्रह दिन में वह संपादकीय लिखने का मौका मुझे दे ही देते थे। एक बार रेल्वे ने रायपुर एवं बिलासपुर के पत्रकारों को कोलकाता (तब कलकत्ता कहलाता था) भ्रमण के लिए आमंत्रित किया। सनत भैया ने भरोसा जताते हुए ‘अमृत संदेश’ से मुझे भेजा। इस तरह पत्रकारिता में टूर पर जाने का मेरे लिए यह दूसरा मौका था। इससे पहले सिंहस्थ कुंभ के कव्हरेज के लिए मैं उज्जैन गया था। ईमानदारी से कहूं तो कोलकाता से लौटने के बाद यहां आकर मैंने जो लिखा और आज बरसों बाद उस लिखे हुए पर नज़र डालता हूं तो वह कृति मुझे कमजोर ही नज़र आती है, लेकिन किसी नये पत्रकार को दूसरे राज्य भेजकर उसके भीतर आत्मविश्वास जगाने का काम सनत भैया ही कर सकते थे। वह दौर ऐसा था जब ‘अमृत संदेश’ बेहद आर्थिक संकट से गुज़र रहा था। तनख़्वाह काफ़ी विलंब से मिला करती थी। वह भैया का व्यवहार ही था जो मेरे जैसे कुछ लोगों को बांधे रखा था और किसी अन्य संस्थान में जाने की हम सोच नहीं पाते थे। उनके पास कमाल की दूरदर्शिता रही है। अब तो ख़ैर कागज़ों पर पढ़ने-लिखने का दौर धीरे-धीरे ख़त्म होते जा रहा है, 90 के उस दशक में पत्रिकाएं छाई रहती थीं। राष्ट्रीय स्तर की एक पत्रिका में चप्पल का विज्ञापन छपा था जो बेहद आपत्तिजनक था। उस विज्ञापन में महात्मा गांधी की प्रतिमा की तस्वीर थी, जो पैर में स्लीपर जैसा कुछ पहने नज़र आ रही थी। जूते-चप्पल वाली एक नामी कंपनी ने मानो यह दर्शाने की कोशिश की थी कि देखो गांधी जी भी हमारे ब्रांड का इस्तेमाल किया करते थे। भैया ने इसके ख़िलाफ ‘अमृत संदेश’ में गहरी चोट करने वाली संपादकीय लिखी थी। निश्चित रूप से ‘अमृत संदेश’ के अलावा और भी तरफ से उस विज्ञापन के खिलाफ़ स्वर उठे रहे होंगे। नतीजतन दोबारा वह विज्ञापन कभी नहीं दिखा।

‘अमृत संदेश’ की तरह वे दैनिक ‘समवेत शिखर’ अख़बार के भी फाउंडर मेंबर थे। ‘समवेत शिखर’ के प्रकाशन शुरु होने के कुछ समय बाद 1991 का लोकसभा चुनाव होना था। हालांकि उस समय छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था लेकिन छत्तीसगढ़ में किस पार्टी को कितनी सीट मिल सकती है उस पर भैया ने एक सर्वे कराया था। वह सर्वे वाली रिपोर्ट भैया के नाम से ‘समवेत शिखर’ के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हुई थी। सर्वे वाली उस ख़बर को अविश्वास की नज़रों से देखा गया था। जब लोकसभा के चुनावी नतीजे सामने आए तो छत्तीसगढ़ की सीटों के परिणाम वाकई चौंकाने वाले थे। परिणाम बिल्कुल वही था जो भैया की सर्वे रिपोर्ट में संभावना के रूप में सामने आया था।

भैया के भीतर स्वाभिमान काफ़ी कूट-कूटकर भरा रहा है। जिस किसी मीडिया संस्थान में कोई अप्रिय स्थिति बनती नज़र आती और उन्हें लगता कि पानी सिर के ऊपर से जा रहा है वे उस जगह को नमस्ते करने में देर नहीं लगाया करते थे। कई बार ऐसा भी हुआ कि नौकरी से इस्तीफ़ा दे देने के बाद कई-कई दिन उन्हें घर में गुजारने पड़े। तब भी वे न टूटे न झूके। दैनिक ‘हरिभूमि’ के संपादक हिमांशु व्दिवेदी जी भैया के प्रशंसक रहे हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि “सनत जी की जो सबसे बड़ी ख़ासियत है वही कभी-कभी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाया करती है।“

कुछ हफ़्तों के अंतराल में आज भी भैया से फोन पर या प्रत्यक्ष बात हो जाया करती है। उनकी बातों में दुर्दशा का शिकार हो रही छत्तीसगढ़ की नदियों को लेकर चिंता झलकते रहती है। उनका यह भी मानना रहा है कि छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल प्रदेश रहा है। कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, उसकी तरफ से योग्य आदिवासी नेताओं को जो सम्मान मिलते नज़र आना चाहिए वैसा होते यहां नहीं दिखता। सोशल मीडिया व किसी भी तरह की अनावश्यक चर्चाओं से दूर रहने वाले सनत भैया आज भी पत्रकरिता की गौरवशाली परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। उनसे कहीं पर असहमत हुआ जा सकता है लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ बिलकुल नहीं किया जा सकता।

@ अनिरुद्ध दुबे, सम्पर्क- 094255 06660

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