भू-माफिया और दलालों के इशारे पर चलती-फिरती हैं- कोरबा की जमीन

कोरबा 19 मार्च। जिले का शहरी और ग्रामीण इलाका भू-माफिया और जमीन दलालों के आतंक से ग्रस्त है। हालात यह है कि चलते-फिरते इंसानों की तो कोई वखत ही नहीं रह गयी है, स्थिर प्रकृति की जमीन भी भू-माफिया और जमीन दलालों के ऊंगली के इशारे पर अपनी जगह बदल देती हैं। सूक्ष्मता से छानबीन कराने पर ऐसे सैकड़ों घोटाले सामने आयेंगे। यहां तक कि निजी ही नहीं शासकीय जमीन भी भू-माफियाओं और जमीन दलालों की कारगुजारियों के चलते लुप्त हो गये हैं।

कोरबा शहर में इन दिनों श्रीमती अरूणिमा सिंह नामक एक महिला की जमीन का मामला गरमाया हुआ है। महिला की रिपोर्ट पर पुलिस ने छानबीन शुरू की और कोरबा के पूर्व पटवारी को पूछताछ के लिए थाना बुलाया, तो खलबली मच गयी। यही नहीं पटवारियों ने जांच को प्रताड़ना बताकर एक दिवसीय धरना भी दे दिया। हालांकि पुलिस पर इस आन्दोलन का कोई खास असर होता नजर नहीं आ रहा। शायद कुछ समय के लिए मामला विलंबित हो जाये, लेकिन पूरी तरह शायद ही दबेगा।

बहरहाल इस मामले ने शहर के निवासियों की अनेक पुरानी यादें ताजा कर दी है। मसलन मसाहती गांव बरबसपुर में सड़क किनारे की जमीनों का गायब हो जाना और निजी जमीनों का मुख्य मार्ग में आकर बैठ जाना। दादरखुर्द में पांच-पांच किलोमीटर दूर की जमीनों का चलकर पहुंच जाना। पोंड़ी-बहार और खरमोरा में सैकड़ों एकड़ शासयकी जमीन का लुप्त हो जाना और उनकी जगह निजी भू-स्वामी की जमीन का अवतरण हो जाना। लेकिन सवाल यह है कि दादरखुर्द में पूर्व में हुई ऐसी पचीसों गड़बड़ियों की शिकायतों की जांच तो हुई नहीं। शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी। फिर ताजा मामलों में क्या कार्रवाई होगी?

जानकर सूत्र बताते हैं कि बरबसपुर में जहां पर नगर निगम कोरबा ट्रांसपोर्ट नगर बसा रहा है, उसके आस-पास एक सौ एड़क से अधिक सरकारी जमीन गायब हो गयी है और भू-माफिया तथा दलालों के इशारे पर मसाहती के नाम पर पंजीपतियों ने कब्जा कर लिया है और बाकायदा उनके नाम पर राजस्व रिकार्ड में दर्ज भी कर दी गयी है। सवाल यह है कि इन घोटालों की जांच कौन करायेगा? या जांच के नाम पर एक और घोटाला कर लिया जायेगा?

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