भीषण गर्मी में गहराया पेयजल संकट

न्यूज एक्शन। भीषण गर्मी से भू-जल स्तर तेजी से नीेचे गिर रहा है। कई इलाकोंं में पेयजल का संकट बढ़ता जा रहा है। हेंडपंप व अन्य साधन गर्मी की मार झेल नहीं पा रहे हैं। लिहाजा लंबी दूरी तय कर पेयजल की व्यवस्था करनी पड़ रही है। वहीं निस्तारी के लिए भी लोगों को परेशान होना पड़ रहा है। निस्तारी के जल साधन सूख चुके हैं।
भू-जल स्त्रोत गिरने के कारण जलस्त्रोतों से आयरन व फ्लाराइडयुक्त पानी लोगों के लिए खतरे का सबब साबित होने लगा है। गांवों में पेयजल की समस्या से निबटने के लिए लोगों को लंबी दूरी तय कर पानी लाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। पीएचई के आंकड़े के अनुसार जिले में 18527 हैंडपंप संचालित है। हैंडपंप में विभाग की ओर से लगातार सुधार की कार्रवाई पीएचई दस्ता करा रहा है। हैंडपंप के बनते बिगड़ते क्रम में अभी भी 93 हैंडपंप में सुधार नहीं हो पाया है। विभागीय अधिकारियों की मानें तो फ्लोराइड व आयरन से प्रभावित हैंडपंपों की संख्या जिले भर में 120 है। इन हैंडपंपों में से 23 में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है। बढ़ते हुए तापमान व पानी की किल्लत के चलते जिन क्षेत्रों के हैंडपंप बंद किए जा चुके हैं, उनमें रिमूवल प्लांट की योजना केवल प्रस्ताव में सीमित होने से वर्तमान परिस्थिति में क्षेत्रीय ग्रामीणों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में स्थापित हैंडपंप की दृष्टि से यदि औसत आंकड़ा जनसंख्या के आधार पर देखा जाए, तो एक हैंडपंप में 70 लोग निर्भर हैं। जिले का एकमात्र फ्लोराइड रिमूवल प्लांट पोड़ी-उपरोड़ा विकासखंड के कापूबहरा में स्थापित किया गया है। यहां चोटिया, रोदे, फूलसर, मेरई, साखो आदि गांवों में इस समस्या की अधिकता देखी जा रही है। वास्तविकता तो यह है कि जिले में पीएचई विभाग के बताए जा रहे फ्लोराइडयुक्त हैंडपंपों के आंकड़ों के अतिरिक्त ऐसे सैकड़ों हैंडपंप आयरन व फ्लोराइडयुक्त हैं, जिनमें जल परीक्षण नहीं किए जाने से आयरनयुक्त पानी पीने लोग मजबूर हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस ग्रीष्म ऋतु में शुरुआती दौर से 31 मार्च तक 461 नए हैंडपंप लगाए जा चुके हैं। हालांकि पीएचई विभाग नए हैंडपंप के तौर पर 461 हैंडपंप लगाने का दावा कर रहा है, किंतु इन आंकड़ों में वह दावा स्पष्ट नहीं है कि किन हैंडपंप में पानी का स्त्रोत नहीं मिला है। अक्सर यह देखा जाता है कि पीएचई विभाग पानी के स्त्रोत नहीं मिलने वाले हैंडपंप को भी अपने आंकड़ों में शामिल कर लेता है। साथ ही साथ उन हैंडपंप को भी शामिल किया जाता है, जिनमें फ्लोराइड व आयरन की अधिकता पाए जाते हैं।

राख भरा गया तो और बढ़ेगा संकट
राखड़ के उचित निस्तारण के लिए बंद पड़े भूमिगत खदानों में राखड़ डालने की योजना बनाई गई है। अगर इस योजना का शत प्रतिशत पालन शुरू कर दिया जाता है तो आने वाले वर्षों में पेयजल का संकट और भी गहरा सकता है। खदानों में राख भर दिए जाने से भू-जल स्तर पर इसका विपरीत असर होने का पूरा अनुमान है। क्योंकि राखड़ से भू-जल स्तर ऊपर आने के बजाए और भी गहराई में चला जाएगा। ऐसी परिस्थिति में गिरते भू-जल स्तर के मद्देनजर इस योजना पर पुन: विचार की आवश्यकता महसूस हो रही है।

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