डीएमएफ कमेटी भंग: जिसे चाही उसे बांटी खनिज न्यास की रेवड़ी
न्यूज एक्शन। राज्य शासन ने डीएमएफ (जिला खनिज न्यास) की समस्त कमेटियों को भंग कर दिया है। पूरे प्रदेश में गांवों की बजाए शहरों में डीएमएफ की राशि से फिजूल के निर्माण कार्य कराए जाने की शिकायत के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है। इसके साथ ही जिले में गठित कमेटी भी भंग हो गई है। अब शासन स्तर पर शासी परिषद के पुनर्गठन के बाद नए सदस्य बनाए जाने के बाद भी नए कार्य स्वीकृत होंगे। साथ ही स्वीकृत हो चुके ऐसे कार्य जिनके लिए फंड जारी नहीं किया जा सका है वे नई कमेटी के अनुमोदन के उपरांत ही शुरू हो पाएंगे। जिले में अब तक डीएमएफ को लेकर जो जानकारी सामने आई है उसके तहत 451 करोड़ की लागत से 16 विभागोंं में 1 हजार 112 कार्य कराए जा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा नगर पालिक निगम कोरबा में 100 करोड़ रुपए के 115 कार्य कराए गए हैं। वैसे कार्यों की संख्या के लिहाज से देखे तो सबसे अधिक कार्य पीएचई में कराए गए हैं। पीएचई में 44 करोड़ की लागत से 223 कार्य कराए गए हैं। वन विभाग और जनपदों को रेवड़ी की तरह करोड़ों का काम बांट दिया गया। बताया जा रहा है कि कई काम बिना टेंडर के ही चालू कर दिया गया। जबकि टेंडर कॉल होता तो निश्चित तौर पर लाखों रुपए बचते। कई स्थानों पर गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों की शिकायत हुई। परंतु कार्यवाही नहीं की गई। आदिवासी विकास विभाग में सबसे ज्यादा 100 करोड़ से अधिक काम दिए गए। इसमें मरम्मत पर लगभग 2 से 3 करोड़ रुपए दिए गए। जबकि जिन छात्रावास और आश्रम में मरम्मत कार्य किया गया उनमें हर साल मरम्मत और रंगरोगन कराया जाता है। इस तरह से जिले में व्यापक पैमाने पर डीएमएफ का दुरूपयोग होने की बात सामने आती रही है।
भूविस्थापितों का आरोप रहा है कि जिले में कई ऐसे निर्माण कार्य शहर में कराए गए जिसकी वर्तमान में कोई आवश्यकता नहीं थी। इनमें 150 करोड़ की लागत से स्याहीमुड़ी में स्वीकृत एजुकेशन हब, तहसील मार्ग में 3 करोड़ 50 लाख की लागत से स्वीकृत कल्चर सेंटर, जेल रोड पर 13 करोड़ 40 लाख की लागत से स्वीकृत कन्वेंशन हॉल शामिल है। कोरबा जिले में डीएमएफ कार्यो में गड़बड़ी का आरोप भी राजस्व मंत्री द्वारा लगाया जा चुका है। इस मामले में तात्कालिक कलेक्टर पी. दयानंद को टारगेट में वे बता चुके हैं। डीएमएफ में भारी गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा सकता। केवल कमेटी भंग करने से बात नहीं बनेगी। बल्कि निर्माण एजेंसियों व संबंधित अधिकारियों की जांच कराए जाने की भी आवश्यकता है। निर्माण कार्यों की संपूर्ण जांच की जरूरत है। ताकि डीएमएफ से अपना खजाना भरने वाले बेनकाब हो सके। विभिन्न विभागों में अनुपयोगी कराए गए कार्यों की जांच भी बनती है। अब देखने वाली बात होगी कि क्या प्रदेश की कांग्रेस सरकार डीएमएफ के घोटालेबाजों पर कार्रवाई करती है या फिर उन्हें अभयदान दे दिया जाता है।