गांव और जंगल के बीच खंदक खोदकर रोकेंगे हाथियों का प्रवेश
हाथी मानव द्वंद्व को रोकने की पहल
तीन मीटर चौड़ा व डेढ़ मीटर गहरा तैयार किया जाएगा एलीफेंट प्रूफ ट्रैंच
कोरबा 28 अक्टूबर। वनमंडल कटघोरा ने खंदक खोदकर हाथियों को ग्रामीण इलाकों से दूर करने का निर्णय लिया है। गांव और जंगल के बीच खोदे जाने वाले खंदकों को एलीफेंट प्रूफ ट्रैंच (ईपीटी) नाम दिया गया है। खंदक की चौड़ाई तीन मीटर गहराई डेढ़ मीटर होगी। वन विभाग के अनुसार हाथी खंदक को पार कर गांव नहीं पहुंच सकेंगे और जनधन की हानि रोकी जा सकेगी।
सर्वाधिक हाथी प्रभावित गांव परला व कापानवापारा से यह प्रयोग शुरू किया जाएगा। वन मंडलाधिकारी कुमार निशांत ने बताया कि इसके लिए शासन से प्रशासकीय स्वीकृति मांगी गई है। उनका कहना है कि यदि इन दो गांव में प्रयोग सफल रहा तो अन्य प्रभावित गांव में भी यह तरीका अपनाया जाएगा। स्वीकृति मिलते ही ईपीटी पर कार्य शुरू किया जाएगा। करीब पिछले तीन साल से केंदई व पसान रेंज में हाथी जमे हुए हैं। पहले हाथियों को आना जाना लगा रहता था पर लंबे समय से यहां विचरण कर रहे हैं। ऐसा माना जाना रहा कि हाथियों ने इसे अपना स्थायी डेरा बना लिया है। यही वजह है कि हाथियों को खदेड़े जाने की जगह अब हाथियों के बीच ही ग्रामीणों को जीवन बसर के तरीके सिखाए जा रहे। साथ ही कुछ ऐसे उपाय किए जा रहे जिससे हाथी जंगल में ही एक निश्चित दायरे में रहें। हाथियों को उनका मनपसंद चारा गुंजा व कोमल बांस भी लगाए गए हैं। इन उपायों से काफी हद तक हाथी मानव द्वंद्व पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है।
वर्तमान में इस क्षेत्र में 45 हाथी विचरण कर रहे हैं। माह भर पहले केंदई वन परिक्षेत्र के ग्रामीणों ने हाथियों से जन सुरक्षा की मांग को लेकर चक्का जाम कर दिया था। प्रभावित किसान शासन से फसल हानि पर प्रति हेक्टेयर 22 हजार की जगह 50 हजार रुपये दिया जाए। खेतों में इन दिनों धान की फसल पकने के कगार पर है। हाथी जंगल छोड़ खेतों की ओर रूख कर रहे हैं।
इस वर्ष अब तक कटघोरा व कोरबा वन मंडल में हाथियों ने 350 एकड़ में लगी धान की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचा चुके हैं। हाथियों के हमले से छह ग्रामीणों की जान जा चुकी है। वहीं पांच हाथियों की भी मौत हो चुकी है। इनमें दो नन्हे हाथी के अलावा तीन वयस्क हाथियों को जान गंवानी पड़ी है। हाथी धान को बड़ी चाव से खाते हैं यही वजह है कि जंगल में चारा व पानी होने के बावजूद गांव तक चले आते हैं। किसान फसल की सुरक्षा के लिए करंट का सहारा लेते हैं। इसकी चपेट में आने से हाथियों की मौत की घटना हो चुकी है।
राज्य शासन ने सात साल पहले लेमरू हाथी अभयारण्य की स्वीकृति दी गई थी। सरकारें बदलती रही लेकिन योजना अब तक काम शुरू नहीं हो पाया पाया है। हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दल से अलग होकर विचरण करने वाले हाथी अधिक खतरनाक होते हैं। अब तक जितनी भी जनहानि हुई उसमें अधिकांश की जान लोनर हाथी की वजह से हुई है।