मृदुभाव होना ही दसलक्षण धर्म का दूसरा लक्षण मार्दव धर्म है

कोरबा। क्षमा के समान मार्दव धर्म भी आत्मा का स्वभाव है। मार्दव स्वभावी आत्मा के आश्रय से आत्मा में जो मन के अभाव रूप, शांति स्वरूप पर्याय प्रकट होती है। उसे भी मार्दव धर्म कहते हैं। मनुष्य जीवन में यदि हमने अपने आप को साधना में ढाल लिया तो जीवन सार्थक एवं उपयोगी बन जाता है । दिगंबर जैन मंदिर में जैन धर्मावलंबियों का पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व बड़े भक्ति भाव के साथ बुधवारी बाजार में मनाया जा रहा है।उक्त विचार श्रमण संस्कृति संस्थान किशनगढ़ जयपुर राजस्थान से पधारे प्रवचनकार श्री रोहित जैन शास्त्री ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन अपने प्रवचन में बताया कि मृदुता अर्थात कोमलता का नाम मार्दव है। मान कषाय के कारण, आत्म स्वभाव में विद्यमान कोमलता का अभाव हो जाता है और उसमें एक अकड़ उत्पन्न हो जाती है ।मान कषाय के कारण मानी अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझने लगता है।उसमें समुचित विनय का भी अभाव हो जाता है। मान के खातिर वह छल कपट करता है ।मान भंग होने पर वह क्रोधित हो उठता है। सम्मान प्राप्ति के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है। माधव धर्म में आज मैं को हटाने का दिन है मान का प्रवचन सरल है। परंतु उसे छोड़ना अत्यंत कठिन है ।अहंकार की मृत्यु पर ही सत्य की विजय है ।आज का मानव अहंकार की कठपुतली बन गया है।


माधव धर्म को यदि पालन करना है या उतरना है तो नम्र होना आवश्यक है। बीज अपना अस्तित्व मिटता है ,तभी वह वृक्ष बनता है ।मार्दव धर्म अहंकार और मान को विसर्जित करने का तरीका है ।अभिमान और दीनता दोनों में अकड़ है। मार्दव धर्म की कोमलता सहजता दोनों में ही नहीं है। मानी पीछे को झुकता है और दीन आगे को ।दोनों सीधे नहीं रहते हैं। मानी ऐसे चलता है जैसे वह चौड़ा हो और बाजार सकरा एवं दीन भारी बोझ से दबे हुए चलता है। यह एक निश्चित तथ्य है कि अभिमानी और दीनता दोनों ही विकार हैं ।आत्म शांति को भंग करने वाले हैं ।और दोनों के अभाव का नाम मार्दव धर्म है।
इस प्रकार उक्त विचारों को सुनकर समस्त जैन बंधु एवं महिलाएं आत्म विभोर हो गई। आज के कार्यक्रम में प्रातः 7:00 बजे से ही संगीत में सामूहिक अभिषेक शांति धारा नित्य नियम देव शास्त्र गुरु पूजन किया गया। जिसमें सर्वप्रथम जैनमंदिर जी पर ध्वज लगाने में वीरेंद्र नारद, रेनू नारद,नेमीचंद जैन, के पी जैन, राजीव सिंघई ,साधना, मंजू आशा ,संजय जैन, राजेश ,वंदना, सौरभ नारद ,मुकलेश,कल्पना, रेनू भागचंद जैन, सुनील ज्योति जैन, उषा शीलचंद जैन, अंतिम अजीत लाल जैन ने सहयोग दिया।चार प्रातिहार्य मैं रजनी जैन, राजेश जैन, मंजूलता, सुनीता नायक उषा शीलचंद सुमन सुजल, रेनू भागचंद ,ममता जेके जैन, रेखा आनंद ने योगदान दिया। श्री जी के अभिषेक हेतु श्री जी को विराजमान श्री आनंद जैन ,राहुल जैन ने किया ।श्रीजी पर छात्र एवं स्वर्ण कलश अभिषेक श्री प्रमोद जैन ने किया प्रथम शांति धारा सुमन सुजल द्वारा किया गया एवं द्वितीय शांति धारा प्रमोद जैन ने की एवं आचार्य श्री जी पर दीप प्रज्वलन श्री पंकज जैन शशि जैन ने किया और अंत में रजनी जैन, राकेश जैन ने चावल ढुराया।
उक्त कार्यक्रम में जैन मिलन समिति के समस्त संरक्षक श्री राजेंद्र जैन ,अजीत लाल जैन, सुधीर जैन ,वीरेन्द नारद, शील चंदजैन, अध्यक्ष श्री जेके जैन, उपाध्यक्ष श्री दिनेश जैन, मुकलेश जैन,सचिव श्री नेमीचंद जैन सहसचिव दीपांशु जैन, सांस्कृतिक सचिव अखिलेश जैनएवं महिला मंडल की समस्त महिलाएं उपस्थिति रही। उक्त कार्यक्रम के संचालन में राजेश जैन की अहम भूमिका रही। उक्त कार्यक्रम की समस्त जानकारी जैन मिलन समिति के उपाध्यक्ष श्री दिनेश जैन ने दी।

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