भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने की मुहिम चला रहे सिन्धी समुदाय के विख्यात सन्त साईं मसन्द साहिब पधारे कोटा
कोटा के सिन्धी समाजसेवी १५ अक्टूबर को आयोजित बैठक में भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने की मुहिम में अपनी भूमिका करेंगे निर्धारित
कोटा/रायपुर। सिन्धी समुदाय के विख्यात देशभक्त सन्त, मसन्द सेवाश्रम रायपुर के पीठाधीश पूज्यपाद साईं जलकुमार मसन्द साहिब पिछले १० वर्षों से देश के पूज्यपाद शंकराचार्यों, जगद्गुरुओं एवं अन्य महान सन्तों के सहयोग से भारत में हर युग में लागू रहे सनातन वैदिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म के शासन को देश में वर्तमान प्रजातांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत ही स्थापित करवाकर भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने की मुहिम चला रहे हैं। वे इस संदर्भ में निर्धारित अपने १३ दिवसीय राजस्थान व महाराष्ट्र के दौरे के अन्तर्गत कोटा पधारे हैं। वे यहां संत कंवरराम सिन्धी धर्मशाला ट्रस्ट द्वारा १४ से १६ अक्टूबर तक आयोजित ८३वें वर्सी महोत्सव में विशेष अतिथि के रूप में भाग लेंगे।
धर्मशाला ट्रस्ट के अध्यक्ष, नगर के विख्यात समाजसेवी गिरधारीलाल पंजवाणी द्वारा साईं मसन्द साहिब के कोटा आगमन पर १५ अक्टूबर को धर्मशाला में कोटा के वरिष्ठ पुरुष व महिला सिन्धी समाज सेवकों की एक विशेष बैठक आयोजित की गई है। बैठक में साईं मसन्द साहिब के मार्गदर्शन में भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने की मुहिम में सिन्धी समाज की भूमिका निर्धारित करने पर विचार विमर्श किया जाएगा। श्री गिरधारीलाल पंजवाणी एवं साईं मसन्द साहिब दोनों ने सिन्धी समाज के स्थानीय समाजसेवी व धार्मिक संगठनों के पुरुष व महिला पदाधिकारियों व अन्य सक्रिय सदस्यों से बैठक में बड़ी संख्या में आकर भाग लेने की अपील की है।
साईं मसन्द साहिब ने बताया कि उनके मन में भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने हेतु प्रजातांत्रिक प्रणाली में भी वैदिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म का शासन स्थापित कराए जा सकने की परिकल्पना ११ सितम्बर २०१२ को ध्यानावस्था के दौरान आई थी। उन्होंने कहा कि उस दिन मैं देश में दिनों दिन बढ़ रही पाप की पराकाष्ठा के कारण बहुत दुखी व चिंतित था। देश में पाप की पराकाष्ठा का यह हाल है कि कुछ वर्षों से देश के कुल करीब साढे सात सौ जिलों में एक भी जिला बाकी नहीं है, जहां ६ महीने से ६ साल की अबोध बच्चियों से कुकर्म न हुए हों। तभी ऐसा लगा कि कोई अलौकिक शक्ति मुझे समझा रही है कि वैदिक सिद्धांतों पर आधारित धर्म का शासन भारत की स्वर्णिम स्थिति का सदैव स्थाई आधार रहा है।