सरकारी और उपक्रमों की जमीन पर हो रहा अतिक्रमण
कोरबा 30 जनवरी। छत्तीसगढ़ में नई सरकार का रूख अवैध कब्जों और दूसरी गैरजरूरी गतिविधियों को लेकर सख्त है, इस तरह का प्रदर्शन पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रहा है। इसमें अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ दूसरे मामले शामल हैं। इन सबके बावजूद कोरबा शहरी क्षेत्र में सरकारी और उपक्रमों की जमीन को हड़पने का बड़ा खेल जारी है। जिस अंदाज में यह सब चल रहा है उससे प्रतीत होता है कि राजनीतिक और सरकारी संरक्षण के बिना ऐसा संभव नहीं है। शायद इसलिए ऐसे मामलों को एक तरह से छोड़ दिया गया है।
साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड कोरबा क्षेत्र द्वारा बीते दशकों में अपने निजी प्रयोजन के लिए लीज पर ली गई जमीन का काफी हिस्सा बेजा कब्जा की भेंट चढ़ गया है और चढ़ रहा है। मानिकपुर की तरफ जाने वाले रास्ते में ऐसे नजारे आम हो गए हैं। मानिकपुर नाला के करीब खाली पड़ी जमीन को हड़पने का काम पूरी रफ्तार से चल रहा है। बीते वर्षों में 4-5 निर्माण यहां पर नजर आ रहे थे अब इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई है। दावा किया जा रहा है कि नेतानुमा कई लोग ठेके पर इस काम को करा रहे हैं। वोट बैंक के चक्कर में न तो इस तरफ कार्रवाई हो रही है और न ही एसईसीएल अपने कोटे की जमीन को बचाने के लिए गंभीर हो रहा है। ऐसे में अतिक्रमणकारियों की बल्ले-बल्ले है।
अतिक्रमण की यही रफ्तार मुड़ापार हेलीपेड इलाके में भी बनी हुई है। यहां की जमीन का वास्ता भी एसईसीएल से ही जुड़ा हुआ है। जमीन को अवैध कब्जा से बचाने के लिए बीते वर्ष स्थानीय प्रशासन और नगर निगम के द्वारा एक-दो मौके पर तोडफोड़ की कार्रवाई की गई लेकिन बाद में हालात ढाक के तीन पात वाले हो गए। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान यहां कई सामाजिक संगठनों के द्वारा अपने बैनर, पोस्टर लगा दिए गए। सरकारी जमीन को यूं ही हासिल करने के लिए इस तरह की कोशिश की गई। हर्रा लगे न फिटकिरी वाले अंदाज में इस काम को किया गया। करोड़ों कीमत की इस जमीन को अतिक्रमण की भेंट चढ़ते हुए एसईसीएल देख रहा है और प्रशासन भी।
कमोबेश यही स्थिति राताखार बायपास से लेकर गेरवाघाट इलाके की बनी हुई है। यहां दिखावे के तौर पर पिछले दिनों नगर निगम की ओर से सामान्य कार्रवाई की गई थी लेकिन अभी भी मुख्य सडक के आसपास अवैध कब्जे बरकरार हैं। इन्हें क्यों छोड़ दिया गया है यह समझ से परे है। दूसरी ओर लचर रवैये के कारण अतिक्रमण करने वालों के हौसले मजबूत होते जा रहे हैं। याद रहे उदासीन रूख के चलते ही रेलवे स्टेशन के सामने पहाड़ी और नीचे मरघट पर अतिक्रमण बीते वर्षों में हो चुका है। यह सब करते हुए लोगों ने किसी प्रकार का विचार नहीं किया।