अब हुआ वनवासियों के साथ न्यायः जमीन के मालिकाना हक के साथ किसान का भी दर्जा मिला
कोरबा 16 नवम्बर। आदि अनंत काल से जल-जंगल-जमीन से वनवासियों का नाता इतना प्रगाढ़ है कि इसके लिए वे जान न्यौछावर करने से भी परहेज नहीं करते। सालों से जिस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं, वह जमीन भी जंगल की थी। अपने पसीने की बूंदों से सींच कर अनाज उगाने वाले इन वनवासियों का जमीनों पर मालिकाना हक भी नहीं था। खेती करते थे, अनाज उगाते थे पर किसान की जगह वनवासी कहलाते थे। जमीन का मालिकाना हक नहीं होना और खेती करने के बाद भी किसान का दर्जा नहीं मिलना इन भोले-भाले मेहनत कश वनवासियों के साथ बड़ा अन्याय था। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की अगुवाई में बनी सरकार ने प्रदेश सहित कोरबा जिले के भी ऐसे सैकड़ों वनवासियों के साथ वास्तविक न्याय किया है। जमीन का मालिकाना हक और किसान होने का दर्जा छत्तीसगढ़ सरकार ने इन वनवासियों को वन अधिकार पट्टे देकर पूरा किया है। इतना ही नहीं सरकार ने दूरस्थ वनांचलों में रहने वाले इन ग्रामीणों को इनकी जमीन का अधिकार देने के साथ-साथ उनकी आजीविका के लिए भी पर्याप्त इंतजाम कराए हैं। वनवासियों को रोजी-रोटी चलाने के लिए वन संसाधन पट्टे दिए गए हैं। वन संसाधन पट्टे जंगलों में आजीविका के साधनों पर वनवासियों का अधिकार सुनिश्चित कराता है। ग्रामीण वनांचलों में रहने वाले लोगों को खेती किसानी के लिए भूमि समतलीकरण, मेड़ बंधान, सौर उर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप से लेकर खेतों की जानवरों से सुरक्षा के लिए तार फेंसिंग तक सरकार ने उपलब्ध कराए हैं। वनवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने और उनके आय के साधनों को बढ़ाने के ये तरीके वास्तव में लंबे से उपेक्षित रहे इन भाई-बहनों के साथ वास्तविक न्याय है।
कोरबा जिले में अभी तक 52 हजार 719 विभिन्न वन अधिकार पट्टों का वितरण कर जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी ग्रामीणों को वनभूमि का अधिकारिक मालिक बनाया गया है। इनसे लगभग 50 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि सीधे इन वनवासियों के मालिकाना हक में आ गई है। वन अधिकार अधिमान्यता पत्र देने के अधिनियम में तीन अलग-अलग वर्गों में बांटकर जंगलों में रहने वाले लोगों को वनभूमि का हक दिया जा रहा है। व्यक्तिगत वन अधिकार अधिमान्यता पत्र के तहत वनवासियों के 75 वर्षों का रिकॉर्ड देखकर उन्हें वनभूमि का पट्टा दिया जा रहा है। वनभूमि से अपनी आजीविका चलाने के लिए इसकी अधिकतम सीमा चार एकड़ तक है। राज्य सरकार ने इस भूमि का सुधार कर उसे खेती योग्य बनाने, कुंए-डबरी खोदकर सिंचाई की सुविधा देने के साथ फेंसिंग करके मवेशियों और जंगली जानवरों तक से सुरक्षा के इंतजाम किए हैं। कोरबा जिले में अभी तक 51 हजार 374 ऐसे व्यक्तिगत वन अधिकार पट्टे वनवासियों को दिए गए हैं। इन पट्टों से वे साढ़े 27 हजार हेक्टेयर से अधिक वनभूमि के मालिक बन गए हैं। सामुदायिक वन अधिकार पट्टों के तहत वनांचलों में रहने वाले लोगों के एक समूह को वनोपज का संग्रहण करने या अन्य आजीविका संवर्धन की गतिविधियां करने के लिए भूमि का हक दिया जाता है। ऐसे पट्टों पर वन संसाधन केन्द्र लगाकर महिला समूहों को वनोपज संग्रहण, खरीदी प्रसंस्करण आदि गतिविधियों से जोड़कर आय के नए साधन सृजित किए जाते हैं। कोरबा जिले में ऐसे एक हजार 345 सामुदायिक वन अधिकार पट्टों से वनवासियों को 51 हजार 198 हेक्टेयर भूमि पर आजीविका संवर्धन गतिविधियों का अधिकार सौंपा गया है। तीसरे तरह का वर्ग सामुदायिक वन संसाधन पट्टों का है। इनसे मिली वनभूमि और जंगल के संसाधनो के उपयोग के लिए समूहों को अधिकार दिए गए हैं। इस जमीन को समूह खेती से लेकर वृक्षारोपण, पेड़-पौधों की कटाई से लेकर वनोपजों के इस्तेमाल और संसाधनों के खरीदी-बिक्री में उपयोग कर सकते हैं। एक तरह से सामुदायिक वन संसाधन अधिकार से पूरे वनाश्रित गांव को आजीविका के नए अवसर मिलने लगे हैं और इससे दूरांचलों के गांवो की अर्थव्यवस्था मजबूत होने लगी है। कोरबा जिले में सामुदायिक वन संसाधनों के 126 वन अधिकार मान्यता पत्रों से वनवासियों को साढ़े 90 हजार हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर आजीविका सृजन का अधिकार दिया गया है।
वन अधिकार मान्यता पत्रों से जमीन के मालिक बनने के बाद वनवासियों ने खेती किसानी को गंभीरता से लेना शुरू किया है। कोरबा जिले के करतला विकासखण्ड के वनांचल में स्थित केरवाद्वारी गांव वन अधिकार मान्यता पत्रों से जमीन का मालिकाना हक पाने वाले वनवासियों में खासा प्रसिद्ध है। पीपलरानी पहाड़ की तलहटी के नीचे वन भूमि पर पूर्वजो के जमाने से खेती करते रहने के कारण फुलवारी बाई को वन अधिकार मान्यता पत्र(पट्टा) मिलने से जमीन का मालिकाना हक मिल गया है। एक पट्टे ने फुलवारी और उसके परिवार की जिंदगी में ऐसा परिवर्तन ला दिया है कि वह लोगो के लिए प्रेरणा बन गई है। पट्टे की जमीन पर अपनी मेहनत से फाइन धान की खेती करके ही फुलवारी ने अपने मुखमण्डल को सुख समृद्धि और चिंता मुक्त मुस्कुराहट के साथ सोने की दो आकर्षक फुल्लियों से सजाया है। वन अधिकार मान्यता पत्र से मिली लगभग एक एकड़ जमीन को मिला कर फुलवारी बाई के पास लगभग पौने तीन एकड़ का खेत है। इस खेत पर चालू खरीफ में फुलवारी ने पतला धान एचएमटी रोपा पद्धति से लगाया है। पहले दूसरो के खेतो में काम करने जाने वाली फुलवारी ने अपने खेत मे रोपा लगाने के लिए गांव के ही दस लोगो को दैनिक मजदूरी पर काम पर लगाया है। फुलवारी अपने पूरे खेत में सिंचाई साधन विकसित करने और फेंसिंग कराकर तीन फसलें लेने की भी योजना बना रही है। उन्हें अपने खेत में धान के अलावा उड़द, मूंग, सूरजमुखी से लेकर साग-सब्जी तक की खेती के लिए शासकीय योजनाओ का लाभ लेने की सलाह कृषि विभाग द्वारा लगातार दी जाती है। फुलवारी अब अपने खेत में सिंचाई के लिए सौर सुजला योजना के तहत नलकूप भी बनवाने की सोंच रही है। करतला विकासखण्ड के ही चिचोली गांव में वन अधिकार मान्यता पत्रों से मिली जमीन पर सामुदायिक बाड़ी बनाकर सब्जी भी उगाई जा रही है। सात वनवासी 10 एकड़ भूमि पर एक साथ सामूहिक रूप से सब्जी उगाकर महज ढाई महीने में ही 80 से 90 हजार रूपए की आमदनी प्राप्त कर चुके हैं। फलदार पौधों के रोपण, मूंगफली और अन्य दलहनों की खेती से लेकर छोटा तालाब बनाकर मछली पालन तक वनवासी इन भूमियों पर कर रहे हैं। कोरबा जिले में ऐसे 199 वनवासियों ने लगभग 280 एकड़ रकबे में 56 बाड़ियां बना ली हैं।
वनवासियों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष करने वाली समाज सेवी संस्थाएं और कार्यकर्ता भी छत्तीसगढ़ सरकार की इस पहल को सराहनीय मानते हैं। अधिकांश का मानना है कि वन अधिकार पत्रों से जमीन मिलने से वनवासियों को व्यक्तिगत सम्मान मिला है। किसान का दर्जा मिला है और अब वनवासियों को जंगलों से महुआ, टोरा, तेंदूपत्ता, हर्रा, बहेड़ा, इमली, साल, धवईंफुल जैसे वनोपजों को इकट्ठा करने में भी परेशानी नहीं होती है। वनवासियों को तेजी से विकास की मुख्य धारा में जोड़ने, उनकी आजीविका बढ़ाने, उनकी शिक्षा-दीक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किए जा रहे कामों से भी वनांचलों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है। इसके साथ ही अवैध कटाई से लेकर अवैध शिकार और दूसरी गतिविधियों को रोकने और वनों की सुरक्षा में वनवासियों का सहयोग भी बढ़ा है।