जब बृजमोहन अग्रवाल परिवार का मांगलिक- प्रसंग बन गया वृहत्तर सामाजिक पर्व @ डॉ. सुधीर सक्सेना

संदर्भ : बृजमोहन अग्रवाल परिवार का वृहत्तर मांगलिक-प्रसंग
“ऑल रोड्स लीड टु बस्तर।” छग में दशहरे के अवसर पर यह कथन बार-बार सुनने को मिलता है। किसी भी दिशा से जायें आप पायेंगे कि सभी दिशाओं से सजेबिजे लोग-बाग उमंग-उल्लास में जगदलपुर की ओर चले जा रहे हैं। परिणय और पर्व में फर्क है, लेकिन ऐसा ही दृश्य रायपुर में जनवरी मास के उत्तरार्द्ध में देखने को मिला। प्रसंग मांगलिक था। पारिवारिक या कि कहें तो दो परिवारों के अटूट संबंधों की डोर से जुड़ने का अनुष्ठान, लेकिन यह मांगलिक प्रसंग समूचे रायपुर के लिये अविस्मरणीय होकर उसकी स्मृति की बही में सदा के लिए दर्ज हो गया।
मैंने जीवन में बहुतेरे विवाह देखे हैं भव्य और ऐश्वर्यमय और उनमें वर या वधू पक्ष की ओर से शरीक भी हुआ हूँ, लेकिन मैंने अपने जीवन में इतना वृहद आयोजन पहले नहीं देखा। यह मेरे देखे वैवाहिक आयोजनों से सर्वथा भिन्न था; अनुभूति और चाक्षुष दोनों मानों से इतना भिन्न कि उसे बरबस अलग वर्गीकृत करना होगा।

बृजमोहन अग्रवाल संप्रति सांसद हैं; उसी रायपुर से सांसद जहां से कभी विद्याचरण शुक्ल, पुरूषोत्तम लाल कौशिक और रमेश बैस सांसद रहे है। ये तीनों अलग-अलग कालखंडों में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे। बृजमोहन रायपुर के वासी हैं, खांटी रायपुरिया। यहीं पले-बढ़े और पढ़े। शहर में रामसागर पारा में उनके परिवार की आढ़त रही है। उन्होंने बरसो बरस शंकर नगर की सरकारी कोठी में गुजारे। अब वह विवेकानंद एयरपोर्ट को जाती सड़क पर मौलश्री में चले गये है। करीब दर्जन भर भाइयों के कुटुम्ब एक ही संकुल में रहते हैं। आज के कल (मशीनी) युग में भाइयों का साथ साथ रहना पारम्परिक सौहार्द्र और अपनत्व का भावभीना उदाहरण है। इस चमकीली नजीर का जिक्र लोगबाग बातचीत में प्राय: करते हैं।

बृजमोहन अग्रवाल के अपने परिवार में बीते एक दशक में तीन विवाह हुये हैं। पहला सन 2015 में बड़े बेटे अभिषेक का। फिर तकरीबन तीन साल पहले बेटी सौ. शुभकीर्ति का और अब 21 जनवरी को छोटे पुत्र चि. आदित्य का। पहले विवाह का स्थल था बीडब्ल्यू कैन्यान और बाद के दोनों विवाहों का ललित महल और जौरा। इन मौकों पर सजावट ऐसी हुई कि उसके पुरनूर वैभव का अक्स जेहन में बरसों-बरस झिलमिलाता रहेगा।

बृजमोहन छत्तीसगढ़ के अपराजेय नेता हैं। इस नाते वह देश के चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं। उनके सरोकारों का दायरा बड़ा है। लोगों के सुख-दु:ख में वह शरीक होते हैं। जरूरतमंदों की मदद करते हैं और मैत्री धर्म निभाते हैं। उनके बंगले पर बारहों मास भीड़ रहती है। इतनी कि आप भीड़ से बिना नामपट देखे बूझ सकते हैं कि अमुक बंगला उसका है। उन्हें प्यार से लोग ‘मोहन भैया’ कहकर बुलाते हैं। यह आत्मीय संबोधन उनके कॉलेज के दिनों से प्रचलित है।

विगत बार की भांति इस बार भी विवाह में मीडियाकर्मियों का जमावड़ा था। दिल्ली, भोपाल, इंदौर समेत मध्यप्रदेश और ओडिशा के अनेक नगरों के पत्रकार। ऐसा प्रतीत होता था मानों कोई मीडिया कॉन्क्लेव आयोजित है। राजनेताओं का तो कहना ही क्या। दलगत राजनीति से परे विविध पार्टियों के नेतागण। मंत्री, स्पीकर्स, नेता प्रतिपक्ष, अध्यक्ष-उपाध्यक्ष, पदाधिकारीगण। मय स्टाफ और लवाजमें के। जिनसे भी मोहन भैया के 45-50 सालों के रिश्ते हैं, सबको न्यौता गया। कोई छूटा नहीं। मित्रगण, सगे-संबंधी, अफसरान, कार्यकर्तामन। आवभगत, सत्कार और दावत में कोई भेदभाव नहीं। कई-कई स्टॉल। हर कहीं परिचारक और परिचारिकायें। सेवा-सहायता को यूं तत्पर कि अभ्यागत पुलक भरी मीठी स्मृतियों के साथ लौटे। कोलकाता और बिहार के शिल्पियों ने पांडाल बांधे। लेकिन उसमें शस्य श्यामला और कला समृद्ध छत्तीसगढ़ की मनोहारी झलक थी। किसी मेगा बजट की फिल्म का मंच प्रतीत होता भव्य स्टेज। यूं भी उसे बालीवुड के मरकज मुंबई के कलाकारों ने रचा था। लोगों में उसे सेलफोन में कैद करने की होड़ लगी रही।


मेहमानों की अगवानी के लिए हर कहीं मेजबां टोली के मेंबर मौजूद थे। एयरपोर्ट पर, रेलवे स्टेशन और तमाम ठिकानों पर। कारों-टैक्सियों के पहिये लगातार घूम रहे थे। मौलश्री अतिथियों के हास-परिहास से महक रहा था। सज्जा हर कहीं थी। मौलश्री में, जौरा में और सबसे बढ़कर विवाह स्थल ललित महल में। हर कहीं व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिये युवक-युवतियां मौजूद थे और इन सब पर नजर और निगरानी थी मोहन भैया की कि कहीं किसी को किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं मिला। परिवहन, भोजन, आवास की चाक-चौबंद व्यवस्था।


यकीनन यह प्रसंग बेहतरीन दस्तरखान के लिये भी याद किया जायेगा। कई शेफ। कई खानसामे। कई रसोइये। एक से बढ़कर एक सुस्वादु व्यंजन। सभी निरामिष। अनेकानेक पेय। बनारस से आये पनवाड़ियों का स्टाल। मीठा पत्ता, मगही, बनारसी, कलकतिया….. तरह-तरह के जर्दे-किवाम और वर्क……। इस अनुष्ठान में कार्यरत एजेंसियों के कर्मियों, कैब और कार चालकों तथा निजी शासकीय स्टॉफ के सदस्यों ने एक पखवाड़े से भी अधिक समय तक सुबह-शाम नाश्ते और दोपहर-रात भोजन का लुत्फ उठाया। निश्चित ही इनकी संख्या पांच हजार से ऊपर होगी। हर आगंतुक का सत्कार इतना आत्मीय कि वह भाव-विभोर हो उठे। मोहन हर आगंतुक से इस तरह भेंटे मानो वह उनका स्वजन या सगा हो। यही उदारता और निश्छल आत्मीयता बृजमोहन की लासानी पूंजी है और आज के बेढब युग में उन्हें अलग पायदान पर खड़ा कर देती है।


साज-सज्जा, आतिथ्य और दस्तरख्वान के अलावा जो पक्ष काबिले गौर और काबिले जिक्र है, वह है समारोह में आमो-खास की शिरकत। लगता था कि हम किसी आनंद मेले या लोक पर्व में हैं। वैसी ही बांकी-छटा। हर दिशा से लोग चले आ रहे हैं। मगन और मुग्ध। सबको यकसां पक्वान्न परोसे जा रहे हैं। कौन यकीन करेगा कि आयोजन की बेनुक्स व्यवस्था में करीब सौ एजेंसियां लगी थीं। बृजमोहन मेरे अनुजवत हैं।


इस विवाहोपरांत बृजमोहन से बात छिड़ी तो उन्होंने कहा – “सुधीर जी। मैं चाहता था कि आम आदमी और वीआईपी सबको महसूस हो कि यह उनके घर की शादी है।” बिलाशक मोहन अपने इस मकसद को साधने में कामयाब रहे। करीब एक लाख लोगों ने इस आयोजन में शिरकत कर इसे अपूर्व और अनूठा बना दिया। इस आयोजन ने बखूबी यह प्रतीति उपजायी कि किसी लाड़ले जनप्रतिनिधि का परिवार इतना वृहत्तर भी हो सकता है और निश्चित ही ऐसे प्रसंग अविस्मरणीय आनन्द लोक की सृष्टि करते हैं और लोगों में पुलक का रस-संचार करते हैं।
@ डॉ. सुधीर सक्सेना, संपर्क -9711123909