कब हटेगी माया की 3 करोड़ी छाया.. कलेक्टर से लेकर अफसर सब है भ्रष्टाचार के भागीदार, अब युवा नेता ने लगाई मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार
बदल गए तीन कलेक्टर पर नही बदले गए भ्रष्टाचार के भागीदार, जयचन्द बन लगा रहें हैं जाँच में सेंध
भ्रष्टाचार उजागर होने के 2 साल बाद भी नहीं आ पाई जांच रिपोर्ट, न हुई एफआईआर
कोरबा 20 नवम्बर। कोरबा कलेक्टर कार्यालय के आदिवासी विकास विभाग में 3 करोड़ के कार्यों की फाइल गुम हो जाने का जिन्न फिर एक बार बोतल से बाहर आ गया है। भाजपा युवा मोर्चा के जिला उपाध्यक्ष अनुराग राठौर ने 3 करोड़ के भ्रष्टाचार के मामले में विभाग में पदस्थ बाबू व ऑपरेटर पर कार्रवाई करने हेतु प्रदेश के मुखिया विष्णु देव साय को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने दोनों को तत्काल प्रभाव से आदिवासी विकास विभाग से हटाकर अन्यत्र पदस्थ करने और भ्रष्टाचार में उनकी भूमिका की जांच कर कार्यवाही करने का निवेदन किया है।
अपने पत्र में अनुराग राठौर ने कहा है कि केंद्रीय सरकार द्वारा 275 (1) मद अंतर्गत कोरबा जिला में आदिवासी बहुल्य क्षेत्र में कार्य हेतु 6 करोड रुपए की राशि दी गई थी जिसमे तत्कालीन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग माया वारियर द्वारा भ्रष्टाचार कर अपने चहेते ठेकेदारों को उपकृत करते हुए 3 करोड रुपये का भुगतान किया गया था तथा भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए उक्त कार्यों की मूल नस्ती को ही कार्यालय से गायब करवा दिया गया था। मामले का खुलासा होने पर कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर ने एक जाँच समिति बनाई थी परंतु उक्त समिति द्वारा जाँच रिपोर्ट आज दिनांक तक प्रदान नहीं की गई है। इसके अलावा श्रीमती वारियर के द्वारा अपने कार्यकाल मे खनिज न्यास की राशि में भी वृहद भ्रष्टाचार किया गया था। इस दौरान विभाग में पदस्थ बाबू अमन राम व ऑपरेटर कुश देवांगन ने इस भ्रष्टाचार में अहम भूमिका निभाई थी। श्रीमती वारियर को ईडी के द्वारा कुछ माह पहले गिरफ्तार किया गया है जो कि वर्तमान में जेल में हैं। ईडी के द्वारा श्रीमती वारियर के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच की जा रही है। इसी क्रम में श्री राठौर ने उक्त बाबू व ऑपरेटर को भ्रष्टाचार में उनका सहयोगी बताते हुए उन पर कार्रवाई की मांग की है साथ ही उन्हें आदिवासी विकास विभाग से हटाकर अन्यत्र पदस्थ करने की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों कर्मचारियों के विभाग में पदस्थ रहते हुए मामले की निष्पक्ष जाँच होना संभव नहीं है। बता दें कि श्रीमती वारियर कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू की खास थी और दोनों पर ही अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न मदों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। दोनों ही महिला अधिकारी वर्तमान में जेल में हैं।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 275 (1) मद अंतर्गत 6 करोड़ 27 लाख रुपये परियोजना प्रशासक, एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना कोरबा को प्रदान किए गए थे। 6 करोड़ 27 लाख रुपए में से 4 करोड़ 95 लाख रुपये का आदिवासी छात्रावास व आश्रमों के रेनोवेशन एवं सामग्री आपूर्ति हेतु उपयोग किया जाना था जिसके लिए कार्य एजेंसी सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग को नियुक्त किया गया। उस समय परियोजना प्रशासक एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना कोरबा तथा सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग कोरबा दोनों पद श्रीमती माया वारियर संभाल रही थी। रेनोवेशन व सामग्री आपूर्ति हेतु मिले 4 करोड़ 95 लाख रुपयों में से 3 करोड़ रुपये का भुगतान तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के कार्यकाल में ही आदिवासी विकास विभाग द्वारा ठेकेदारों को किया गया था। इसी बीच माया वारियर का स्थानांतरण हो गया। माया वरियार के स्थानांतरण पश्चात श्रीकांत कसेर सहायक आयुक्त नियुक्त हुए। वर्तमान सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री कसेर के द्वारा जब वित्तीय वर्ष के अंत मे केंद्र सरकार के “आदि ग्राम” पोर्टल में अनुच्छेद 275(1) मद के व्यय से संबंधित जानकारी अपलोड करने के लिए भुगतान से संबंधित फाइलें खंगाली गई तो पता चला कि 3 करोड़ के भुगतान तथा उससे संबंधित कार्यों के निविदा अभिलेख, कार्य आदेश, प्राकलन, माप पुस्तिका, देयक वाउचर समेत कार्यों की मूल नस्ती ही कार्यालय से गायब थी। श्री कसेर के अनुसार 31 मार्च 2023 की तिथि तक बैंक से पेमेंट भुगतान किया गया था। मामला उजागर होने पर बैंक स्टेटमेंट भी निकाला गया, लेकिन उक्त स्टेटमेंट में भी फर्म या एजेंसी का उल्लेख नही होने के कारण खर्च की विस्तृत जानकारी अभी तक नही मिल पाई है।
मामला उजागर होने के पश्चात विभागीय अधिकारी कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में लिपिक को नोटिस जारी किया गया तथा अधिकारियों द्वारा मामले में एफआईआर दर्ज करने की बात कही गई थी।
सहायक आयुक्त की भूमिका संगिद्ध
इस पूरे मामले में आदिवासी विकास विभाग के वर्तमान सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर की भूमिका संदेह से परे नहीं कही जा सकती। मामला उनके पदस्थ होते ही उजागर हुआ था। तब मामले की जांच के लिए तत्कालीन कलेक्टर ने जाँच समिति बनाई थी तथा सहायक आयुक्त श्री कसेर ने एफआईआर दर्ज कराने तक की बात कही थी। मामला उजागर हुए लगभग 2 वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है परंतु ना तो आज तक मामले में एफआईआर दर्ज हुई और ना ही कलेक्टर द्वारा बनाई गई जाँच समिति ने अपनी जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की है। कुल मिलाकर यह बात स्पष्ट है कि मामले में लीपा पोती की जा रही है तथा चोर चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर वर्तमान अधिकारी और कलेक्टर भी मामले को औपचारिकता कर रफा दफा करने में लगे हुए हैं।
वहीं भ्रष्टाचार के दौरान विभाग में पदस्थ बाबू अमन राम व ऑपरेटर कुश देवांगन पर अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई न होना भी इस बात का संकेत देता है कि इस प्रकरण को लेकर विभागीय अधिकारी गंभीर नहीं है। शुरुआती दौर में सहायक आयुक्त श्री कसेर ने आक्रामक तेवर तो दिखाए परंतु समय के साथ लगता है वह भी सेट हो गए हैं और श्रीमती वारीयर की राह ही चलना चाह रहे हैं। तभी तो उन्हें गाइड करने के लिए वारियर के सहयोगी ऑपरेटर व बाबू को आज भी श्री कसेर ने अपने अधीनस्थ रखा हुआ है। कार्यालय से 3 करोड़ के कार्यों की फाइल गायब हो जाए और बाबू को पता तक न चले यह तो किसी काल्पनिक कहानी से भी परे प्रतीत होता है। मामला उजागर होने के बाद कोरबा में कई कलेक्टर बदल गए परंतु इस मामले में तथा उक्त दोनों कर्मचारियों पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होने से यह स्पष्ट है कि कहीं ना कहीं किसी वरिष्ठ अधिकारी का संरक्षण उन्हें प्राप्त है। ऐसे में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त श्री कसेर की भूमिका संदेहास्पद प्रतीत होती है।